भारतीय संस्कृति में पुनर्जन्म की संकल्पना

भारतीय मनीषियों का मानना है कि जीव के सभी चेष्ठू गतिविधियों का कारण परम ब्रह्म यह ईश्वर है जो सब जीवो में आत्मा बनकर बैठा है यही उनकी जीवन शक्ति का आधार है उनकी गतिशीलता सामर्थ्य चेतना विकास की क्षमता भोजन पदार्थों को ऊर्जा में परिवर्तित करने की क्षमता जन्म दे सकने की क्षमता आदि इसी प्राण चेतना के कारण से है यही जड़ और चेतन में भेद करती है

निर्जीव पदार्थ का केवल अस्तित्व होता है उनमें ना अनुभूति होती है और न जीवन किंतु वेदों के अनुसार जगत में उपस्थित पांच प्रकार के जीवो में इस प्राण चेतना का स्तर अलग अलग होता है इसे परम ब्रह्म की कलाओं के रूप में व्यक्त किया गया है परब्रह्म परमात्मा पूर्ण चैतन्य स्वरूप है और 16 कलाओं से परिपूर्ण माने गए हैं जमीन से उत्पन्न होने वाली वनस्पति पेड़ आती में भोजन ग्रहण मित्रा ने देश के प्रभाव को ग्रहण करने की क्षमता होती है

इसमें केवल अन्य कोर्स का विकास बताया जाता है अतः यह एक कला से युक्त बताए गए पसीने से पैदा होने वाले जूली का दीजिए जिनमें अन्य कोच के साथ प्राण में कोर्स का भी विकास है यह सक्रिय जीव हैं 12 कलाओं से युक्त बताएं गया है अंडे से उत्पन्न होने वाले पक्षी सर्व आदिति कलाओं से युक्त माने गए हैं क्योंकि इनमें अन्य और पुराण में कोषों के साथ अनु में कोर्स भी विकसित होता है यह संकल्प विकल्प भी करते हैं पेंडेजो में विज्ञान में कोई भी प्रकट होता है अतः यह 4 कलाओं से युक्त बताए गए

केवल मनुष्य ही जरायुज प्राणी है जिसमें आनंद में कोई भी विकसित है वह अपना आनंद है सी आदि क्षेत्रों के द्वारा व्यक्त कर सकता है और बिना दैनिक जेष्ठा के आनंद का अनुभव भी कर सकता है बुद्धि भावना और प्रतिवाद प्रदर्शन की क्षमता के कारण मनुष्य को पांच से 8 कलाओं से युक्त बताएं क्या है सामान्य कोटि के मनुष्य में चेतना की 5 कलाएं विकसित बताई गई है

सुसंस्कृत मनुष्य में चलाएं विशेष प्रतिभा संपन्न मनुष्य में सांप कराएं तथा महापुरुषों में 8 कलाएं उपस्थित बताई गई वेद पुराण कहते हैं कि मृत्यु के समय आत्मा चेतना से अलग हो जाती है और नया शरीर धारण कर लेती है

अर्थात जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्याग कर नया वस्त्र धारण करता है इसी प्रकार देदारी आत्मा पुराने शरीर को छोड़कर दूसरा नया संस्थान करती है

गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा है

ए अर्जुन मेरे और तुम्हारे अनेक जन्म बीत गए हैं ईश्वर होकर में उन सब को जानता हूं और तुम उसे नहीं जानते

पुनर्जन्म की अवधारणा भारतीय संस्कृति के अद्भुत खोज मानी जा सकती है 

सृष्टि की अत्यंत तू संगठित सुव्यवस्थित और नियम पालन व्यवस्था को देखकर विश्व के महानतम वैज्ञानिक परब्रह्म परमात्मा के अस्तित्व को मानने लगे हैं जैसा कि अल्बर्ट आइंस्टाइन ने कहा सिस्टर के यहां कुछ भी अव्यवस्थित नहीं है यहां सब कुछ सुनियोजित है

सिस्टर के रूप में एक ऐसे कलाकार की आकृति मेरे मन में उभरती है जिसने बड़े मन व लगन से गति बनाई है जिसमें बहुत प्रकार के रंग अपनी तूलिका से सजे हुए हैं कोई चाह कर भी उसमें कोई कमी नहीं निकाल सकता

विज्ञानिक जीवित कोशिकाओं के अंदर मौजूद फोटो प्लाजा को जब शक्ति का आधार मानते हैं हमारे शरीर का प्रत्येक भाग छोटी मोटी कोशिकाओं से बना है प्रत्येक कोशिका के अंदर पतला चिकना द्रव्य फोटो प्लाजा में होता है और एक न्यूक्लियस होता है नई कोशिकाएं बनाने की क्षमता इन न्यूक्लियस में ही होती है

रासायनिक पदार्थों को शक्तियां प्राण चेतना मानने में सबसे बड़ी वजह यह है कि रसायन की जड़ता चेतना के भीतर संकल्प शक्ति और आकांक्षाओं को आश्चर्यजनक कैसे कर सकती है समस्या का निदान ढूंढने के लिए ₹1 तथा वितरण की बात कह रहे हैं यह समस्या वही की वही है

जहां तक पुनर्जन्म संकल्पना का प्रश्न है तो वैज्ञानिक स्पर्म और नींबू को जिसमें क्रमशः पिता और माता के सभी गुण अवगुण गुणसूत्रों के रूप में मौजूद रहते हैं के सहयोग से नए प्राणी के जन्म का तथ्य मांग कर परोक्ष रूप से पुनर्जन्म के सिद्धांत को मानते ही हैं वैसे विश्व भर के वैज्ञानिक पुनर्जन्म के क्षेत्र में शोध में लगे हुए हैं

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