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जानिए भारत के इन ऐतिहासिक लेखकों को ?

short info :- प्राचीन भारतीय इतिहास के संदर्भ में अनेक महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की गई थी परंतु उनमें से अनेक पुस्तकों के लेखक के नाम अज्ञात हैं और हमारे पास उसकी जानकारी का कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं है यहां केवल उन्हें कुछ लेखकों का वर्णन नीचे दिया जा रहा है जिनके जीवन और ग्रंथ के संबंध में हमें जानकारी प्राप्त है

बाणभट्ट प्राचीन भारत का एक प्रसिद्ध एवं महत्वपूर्ण लेखक -:

बाणभट्ट का एक प्रसिद्ध एवं महत्वपूर्ण लेखक था उसने प्राचीन भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण योगदान दिया वह अपनी रचना हर्षचरित के कारण विशेष रूप से जाना जाता है यह उसके स्वामी सम्राट हर्ष की आत्मकथा है जिसमें उसने अपने स्वामी के चरित्र का गुणगान किया है डॉक्टर गोविंद चंद्र पांडे ने इस के संदर्भ में लिखा है कि यह काव्य ग्रंथ है इतिहास नहीं बाणभट्ट का हर्षचरित प्राचीन इतिहास का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है

ऐसा विचार किया जाता है किस महाकाव्य ग्रंथ में बाणभट्ट ने सम्राट हर्ष के संपूर्ण जीवन वृत्त का वर्णन नहीं किया है तथा ना ही लेखक ने घटनाओं का क्रमबद्ध बंद वर्णन किया है इस ग्रंथ में बाणभट्ट नेतृत्व और कल्पना का सुंदर समन्वय प्रस्तुत किया है पुस्तक का मुख्य विषय नौकरी साम्राज्य पर शत्रुओं के द्वारा किया गया आक्रमण था

और जिसके फलस्वरूप मॉकरी शासक की मृत्यु हो गई थी हर्ष ने अपनी सेना की सहायता से शत्रुओं के विरुद्ध अभियान किया ताकि उन्हें भागने के लिए बाध्य किया जा सके और अपनी बहन के जीवन की रक्षा करने में सफल हो सके।

इस आक्रमण के बाद जंगल की ओर भाग गई थी इस कृति में बाणभट्ट ने युद्ध की घटनाओं का कोई उल्लेख नहीं किया है और हर्ष और उसकी बहन राशि के मिलन के साथ पुस्तक का अंत किया है बाणभट्ट ने अपने लेखन में घटनाओं की क्रम की ओर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया है

उसके द्वारा इस ग्रंथ में वर्णित अन्य तथ्यों को लिखते समय तिथि क्रम की अवहेलना की गई है उसका मुख्य कारण बाणभट्ट का मूल उद्देश्य अपने संरक्षक सम्राट के व्यक्तित्व को उजागर करना था जिसमें वह सफल रहा था का स्वरूप काव्यात्मक था।

किंतु उसकी गणना प्राचीन भारत के इतिहास कारों में करने का प्रमुख औचित्य यह है कि तत्कालीन इतिहासकारों ने अपने ग्रंथों में उस समय की राजनीतिक स्थिति का वर्णन किया है और बाणभट्ट ने भी हर्ष कालीन राजनीतिक स्थिति को स्पष्ट करने का प्रयास किया इतिहासकारों की श्रेणी में उचित नहीं है

विल्प्राहण प्राचीन भारतीय लेखन की परंपरा का एक प्रसिद्ध विद्वान:-

विल्प्राहण प्राचीन भारतीय लेखन की परंपरा का एक प्रसिद्ध विद्वान विचारक किया जाता है उसका जन्म 1440 में कश्मीर में हुआ था उसने कई स्थानों का भ्रमण किया था और खोना मुख्य नामक स्थान पर अपने परिवार सहित निवास करने लगा था विलन को कल्याणी के चालुक्य शासक का संरक्षण प्राप्त था

जिसने उसे विद्यापति की उपाधि से विभूषित किया था सुंदरी नामक एक नाटक लिखा था जिसमें उसने एनहिलवाड़ के शासक करण देव प्रथम के विवाह का विस्तृत वर्णन किया है किंतु उसका सर्वाधिक महत्वपूर्ण ग्रंथ विक्रमा देव चरित है यह ग्रंथ विक्रमादित्य चतुर्थ के इतिहास के विभिन्न तथ्यों की पुष्टि करने का महत्वपूर्ण साक्ष्य विलन उल्लेख किया है,

कि विक्रमादित्य चतुर्थ के तीन पुत्रों में से दूसरा था जो उसे गद्दी पर बैठने का इच्छुक था परंतु विक्रमादित्य ने गद्दी पर आसीन होने से इनकार कर दिया था जिससे काम उसका बड़ा भाई सिंहासन अरुण हुआ किंतु उसने अपने बुरे व्यवहार के कारणों से जनता को नाराज कर दिया

उसने अपने भाई विक्रमादित्य चतुर्थ के विरुद्ध एक षड्यंत्र रच कर उसकी हत्या करने की योजना बनाई किंतु समय से पहले यस्टरडे खुल गया और विक्रमादित्य भाई सोमेश्वर पर आक्रमण करके उसे बंदी बना लिया इस प्रकार मिलने बड़े भाई को बुराई और छोटे को अच्छाई के रूप में वर्णित किया है इस ग्रंथ में विक्रमादित्य चतुर्थ को एक महान व्यक्ति के रूप में वर्णित किया गया है,

जो भी आज्ञा पालन करता है विक्रमादित्य का वर्णन एक अत्यंत उदार व्यक्ति के रूप में वर्णित इसकी पुष्टि किए जाने के कारण को विद्वानों ने पक्षपात पूर्ण माना है सोमेश्वर द्वितीय के शासन से एक अभिलेख में उसके श्रेष्ठ चरित्र के कारण प्रशंसा का पात्र लिखे जाने का वर्णन उपलब्ध होता है।

अट्ठारह सर्वोच्च में रचित अपने इस ग्रंथ में राजा विक्रमादित्य के चरित्र को प्रस्तुत करने के लिए लाक्षणिक प्रयोगों एवम प्रतीकों को माध्यम बनाया है,

इतिहास दृष्टि से चालू के जीवन के प्रति एक महान योगदान है इतिहास को परंपरागत पद्धति से संबंधित करने का प्रयास किया किंतु फिर भी प्राचीन इतिहास लेखन की दृष्टि से महत्वपूर्ण ग्रंथ स्वीकार किया जाता है।

उसमें अनेक ऐतिहासिक दिखाई गई विलयन की आलोचना इस दृष्टि से की जा सकती है कि उसके द्वारा वर्णित इतिहास का उद्देश्य अपने शासक की छुट्टियों को छुपाना अच्छाइयों को जागृत करना था

जयानक की गणना प्राचीन भारत के प्रसिद्ध इतिहासकारों में की जाती है।:-

जयानक की गणना प्राचीन भारत के प्रसिद्ध इतिहासकारों में की जाती है यह कश्मीर से संबंधित था ऑल वाल्मीकि की रामायण से अत्यधिक प्रभावित था उसने तराइन के युद्ध के पश्चात अपने ग्रंथ पृथ्वीराज विजय लिपिबद्ध किया उसे तर्क ज्योतिष और व्याकरण का पूर्ण ज्ञान था अपने ग्रंथ में जयंत ने उत्तरी राजस्थान के चमार शासक की उपलब्धियों एवं शौर्य को विस्तृत व्याख्या की है,

वास्तव में जाया न क अपने ग्रंथ में पृथ्वीराज तिथि का वर्णन इस प्रकार करना चाहते थे कि जिस तरह से बाल्मीकि ने अपने काव्य रामायण में राम को वर्णन किया था यह ग्रंथ दो भागों में उपलब्ध है।

प्रथम भाग में कुछ अलौकिक तत्वों को सम्मिलित किया गया है किंतु पुस्तक के दूसरे भाग में ऐतिहासिक साक्ष्यों और अभिलेखों के संदर्भ में वर्णन मिलता है यदि उक्त ग्रंथ में इतिहास लेखन की दृष्टि से क्या है परंतु उसमें भारतीय इतिहास दर्शन के गुण स्पष्ट है

जया नाक ने अपने ग्रंथ पृथ्वीराज विजय में संयोगिता का समीकरण देवी तिलोत्तमा से किया है तराइन के प्रथम विश्व की के वर्णन के पश्चात पीयूष घटनाओं का उसका वर्णन अधूरा है इसका यह कांड्या बताया जाता है कि कुछ कांड में जाना को अपने घर लौट जाना पड़ा था

अतः संपर्क के अभाव में व संपूर्ण घटना का वर्णन प्रस्तुत नहीं कर सका द्वितीय यह भी संभावना है कि वह अपने ग्रंथ के नायक पृथ्वीराज तृतीय राज और पतन का वर्णन करने ग्रंथ में करने का इच्छुक था बताएं कि दूसरे युद्ध की घटनाओं के द्वारा अपने स्वामी के महत्व को कम नहीं करना चाहता था

जया नक का ग्रंथ कई दिनों से महत्वपूर्ण स्वीकार किया जाता है।

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